किसी बंद जगह में दिन भर बैठकर छींकने वाले लोगों... बाहर निकलो, किसी रेल की खिड़की से दुनिया को झाँको, बड़ी खूबसूरत दिखेगी यह... शीतल हवाओं में मुस्कराती और नाचती हुई यह दुनिया बहुत ही ताजी लगेगी तुम्हें! तुम्हारे बंद बदबूदार कमरे से बहुत साफ...
हिंदी समय में संदीप तिवारी की रचनाएँ